श्रीकृष्णाश्रय" एक गहन भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जिसकी रचना श्री वल्लभाचार्य ने की थी। यह श्रीकृष्ण को परम आश्रय और मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार करने की भावना को प्रकट करता है। यह रचना सांसारिक संघर्षों के बीच श्रीकृष्ण पर अडिग विश्वास की महत्ता को उजागर करती है।

  • भक्ति का मर्म: श्रीकृष्ण को साधन और फल दोनों के रूप में दर्शाया गया है।
  • संघर्षों पर विजय: श्रीकृष्ण की शरण लेने से आंतरिक और बाह्य बाधाओं को पार किया जा सकता है।
  • मुक्ति का मार्ग: श्रीकृष्ण को कर्म, ज्ञान, और भक्ति मार्ग का केंद्र बताया गया है।
  • पूर्ण समर्पण: “कृष्ण एव गतिर्मम” के माध्यम से श्रीकृष्ण की इच्छा को समर्पण का सर्वोच्च रूप माना गया है।
  • भक्तों के लिए आश्वासन: दृढ़ विश्वास रखने वाले भक्तों को श्रीकृष्ण की कृपा और मुक्ति का वचन दिया गया है।

कलियुग में खल धर्म (दुष्ट धर्म) के कारण सभी मार्ग समाप्त हो गए हैं, और समाज में पाखंड का अत्यधिक प्रभाव हो गया है। ऐसे समय में श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति (आश्रय) हैं।

समस्त भूमि म्लेच्छों द्वारा आक्रांत हो गई है और इनमें केवल पापियों का निवास रह गया है। सत्पुरुषों पर हो रही पीड़ा के कारण समाज अत्यधिक व्यग्र हो चुका है। ऐसे कठिन समय में, श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति (आश्रय) हैं।

गंगा जैसे श्रेष्ठ तीर्थ स्थल अब दुष्ट लोगों (दुष्टपुरुषों) के आधिक्य से घिर गए हैं। इस कारण, इन तीर्थों का दिव्य स्वरूप (आधिदैविक स्वरूप) लुप्त हो गया है। ऐसी स्थिति में, केवल श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति (आश्रय) हैं।

पंडित अहंकार के कारण अत्यधिक भ्रमित हो गए हैं। वे पापी पुरुषों का अनुसरण करने लगे हैं और अपने लाभ और प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए ही प्रयासरत रहते हैं। इस स्थिति में, केवल श्रीकृष्ण ही मेरी गति (आश्रय) हैं।

मंत्रों का सही ज्ञान न होने, व्रतों आदि का पालन न होने, और देवता व अर्थ के तिरोहित होने के कारण मंत्र अपनी शक्ति और प्रभाव खो चुके हैं। ऐसे समय में श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति (आश्रय) हैं।

आजकल, विभिन्न कर्मकांड और व्रत-उपवास परस्पर विरोधी मतों के कारण नष्ट हो गए हैं। और ऐसा प्रतीत होता है कि इन मतभेदों का मुख्य उद्देश्य पाखंड को बढ़ावा देना है। ऐसे समय में, केवल श्रीकृष्ण ही मेरी शरण हैं।

अजामिल जैसे पापियों के दोषों का नाश करने वाले प्रभु मेरे हृदय में बसे हैं, और जिन्होंने अपना संपूर्ण माहात्म्य प्रकट किया है, वे श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति हैं।

सभी देवता प्राकृत हैं और अक्षर ब्रह्म के आनंद की भी गणना की जा सकती है, जबकि हरि पूर्णानंद हैं। इसलिए, श्रीकृष्ण ही मेरी एकमात्र गति हैं।

विवेक (सही और गलत का ज्ञान), धैर्य (धारण और सहन करने की शक्ति) और भक्ति (ईश्वर की आराधना) से रहित, पाप में आसक्त (लिप्त) और अत्यंत दीन (दरिद्र और हीन) ऐसे मेरे लिए, केवल श्रीकृष्ण ही वास्तविक गति (आश्रय) हैं।

श्रीकृष्ण सर्वसामर्थ्य से युक्त हैं और सभी स्थानों, अवस्थाओं, और प्रयोजनों में संपूर्ण रूप से कार्य करने में सक्षम हैं। इसलिए, मैं उन श्रीकृष्ण से प्रार्थना करता हूँ कि वे उनकी शरण आए हुए जीवनों का उद्धार करें।

यह श्रीकृष्णाश्रय स्तोत्र, यदि श्रीकृष्ण की सन्निधि में पाठ किया जाए, तो वह व्यक्ति श्रीकृष्ण के आश्रय में सुरक्षित होता है। श्रीवल्लभाचार्यजी ने इसे ऐसा ही वर्णित किया है।


॥इति श्रीवल्लभाचार्यविरचितम् कृष्णाश्रयस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥